Raja Harishchandra Ki Kahani

Hindi Kahani Story HL
2 min readJan 8, 2024

--

Raja Harishchandra Ki Kahani

Raja Harishchandra Ki Kahani
Raja Harishchandra Ki Kahani

एक समय की बात है, जबकि एक राजा अपने राज्य को बहुत सुख-शांति से चला रहा था। उसका नाम था राजा हरिश्चंद्र। वह एक न्यायप्रिय और ईमानदार राजा थे। लोग उन्हें अपने धर्मपति राजा के रूप में पुजारी करते थे।

राजा हरिश्चंद्र की देवी तुल्जा व्रत के प्रति विशेष श्रद्धा थी। एक दिन, जब वह व्रत मना रहे थे, वहां एक ब्राह्मण आये और अपने संकट का बयान करने लगे। ब्राह्मण ने कहा, “राजा, मेरे पति ने मुझे विशेष व्रत में अपने पति का भूखा करने का आदान-प्रदान किया है। कृपया मेरी सहायता करें और मेरे पति को भोजन देने की कृपा करें।”

राजा हरिश्चंद्र ने ब्राह्मण की बातों को सुनकर उन्हें दीनता से देखा और तत्काल उनकी सहायता करने का निर्णय लिया। राजा ने अपनी पत्नी से आदान-प्रदान करने का आदान किया और ब्राह्मण को समृद्धि भरा भोजन दिया।

कुछ समय बाद, राजा की रानी तथा राजा के पुत्र का दीन दयालु हृदय देखकर देवी तुल्जा ने उन्हें आपत्तियों से मुक्ति प्रदान की। उन्होंने राजा से व्रत के प्रति उनकी निष्ठा को साबित करने का अनुरोध किया और राजा हरिश्चंद्र ने इसे स्वीकार कर लिया।

एक दिन, राजा की शक्तिशाली सेना को एक राजा ने चुनौती दी। युद्ध के लिए तैयार होने पर राजा हरिश्चंद्र ने अपने पुत्र के साथ सेना की ओर बढ़ते हुए एक विशाल युद्ध में प्रवृत्त हुए।

युद्ध के दौरान, राजा हरिश्चंद्र ने अपनी प्राणों की भी आहुति दी, लेकिन ब्राह्मण की सहायता के कारण उन्हें युद्ध में जीत मिली। विजयी होकर राजा ने विजययात्रा के दौरान अनेक राजाओं को शांति और सौभाग्य की कामना की।

राजा हरिश्चंद्र का राज्य एक समृद्धि और खुशी भरा रहा। लेकिन एक दिन, देवी तुल्जा ने राजा को परीक्षण के लिए आदान-प्रदान का निर्देश दिया। उन्होंने राजा से कहा, “राजा हरिश्चंद्र, तुम्हें अपने पुत्र को बलि चढ़ाने का कठिन निर्णय करना होगा।”

राजा हरिश्चंद्र को यह सुनकर हृदय में दुख हुआ, लेकिन वह अपने वचनों पर दृढ़ रहे और बलि चढ़ाने का निर्णय किया। यह सुनकर रानी और पुत्र भी उदास हो गए।

विचार-विमर्श के बाद, रानी ने भी अपनी शत्रुओं को मिलाकर सहायता करने का निर्णय लिया और राजा की दृढ़ता को देखकर देवी तुल्जा ने राजा हरिश्चंद्र की प्रशंसा की।

आख़िरकार, राजा हरिश्चंद्र ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने का कठिन निर्णय किया, लेकिन उस दृढ़ निश्चय ने उन्हें देवी तुल्जा की कृपा से बचा लिया। देवी ने राजा की ईमानदारी को देखकर उन्हें अपनी कृपा से आशीर्वाद दिया और उन्हें अपने पुत्र को भी स्वस्थ और सुरक्षित देखकर राजा हरिश्चंद्र का दुःख मिट गया।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि ईमानदारी और निष्ठा कभी भी हार नहीं मानती हैं, और धर्म के प्रति समर्पण से ही व्यक्ति अपनी आत्मा को पावन बना सकता है।

Read More Story on my site: Hindi Kahani Story HL

--

--

Hindi Kahani Story HL
Hindi Kahani Story HL

Written by Hindi Kahani Story HL

0 Followers

Hindi Kahani Story HL में आपका स्वागत है ❤Follow For More❤

No responses yet